Shri Ramayana By M. I. Rajasve
श्री रामायण
द्वारा : एम. आई. राजस्वी
प्रकाशक: FINGERPRINT
रामायण के रचयिता वाल्मीकि ने प्रथम अलंकृत काव्य लिखकर समस्त पश्चातवर्ती भारतीय कवियों के लिए आदर्श प्रस्तुत किया था। वाल्मीकि रचित रामायण में राम की कथा बहुत विस्तार से वर्णित है। वाल्मीकि की दृष्टि इतनी सूक्ष्म और कल्पना-शक्ति इतनी उर्वर है कि प्रत्येक दृश्य को उन्होंने सुन्दर विस्तार प्रदान किया है।
रामायण का विभाजन सात खण्डों में हुआ है यथा
- बालकाण्ड,
अयोध्याकाण्ड, अरण्यकाण्ड, किष्किन्धा कांड, सुन्दरकाण्ड, लंकाकाण्ड तथा उत्तरकाण्ड।
रामायण काल की बात करें तो रामायण की रचना
पाँचवी शताब्दी ई. पू. में मानी जाती है
जो महाभारत के पूर्व का घटना क्रम है एवं महाभारत में रामायण की पूरी कथा वर्णित
है और राम के जीवन से सम्बद्ध कुछ स्थलों को वहाँ तीर्थ के रूप में देखा गया
है। रामायण का संकेत जैन और बौद्ध ग्रन्थों से भी
प्राप्त होता है।
रामायण के केंद्र में स्थल अयोध्या नगरी है ,वहां के राजा दशरथ जो की पूर्व ज़न्म में मनु थे एवं
उनकी कौशल्या, कैकेयी और सुमित्रा नामक पत्नियाँ थीं। कौशल्या पूर्व ज़न्म में भी मनु की पत्नी थीं एवं तब
उनका नाम शतरूपा था वे संसार की प्रथम स्त्री थीं। ऐसी हिंदी शास्त्रों की मान्यता है। इनका ज़न्म ब्रम्हा के वामांग से हुआ था।
सन्तान प्राप्ति हेतु अयोध्यापति महाराजा दशरथ
ने अपने गुरु श्री वशिष्ठ की आज्ञा से पुत्रकामेष्टि यज्ञ करवाया, जिसे विभिन्न महान ऋषियों की उपस्थिति
में ऋंगी ऋषि द्वारा सम्पन्न किया गया। भक्तिपूर्ण आहुतियाँ पाकर अग्निदेव प्रसन्न हुये और स्वयं प्रकट होकर उन्होंने
राजा दशरथ को खीर से भरा हुआ पात्र (
हविष्यपात्र ) रानियों को प्रसाद रूप ग्रहण करने के आदेश के संग प्रदान किया जिसे राजन ने अपनी तीनों पत्नियों में बाँट
दिया। खीर के सेवन के परिणामस्वरूप कौशल्या के गर्भ से राम का, कैकेयी के गर्भ से भरत तथा सुमित्रा के गर्भ से लक्ष्मण और शत्रुघ्न का
अवतरण हुआ।
वाल्मिक रामायण को आधार मान कालिदास, भारवि, माघ आदि ने भी महाकाव्यों की रचना की। एवं
भिन्न भिन्न गुणी जनों द्वारा रामायण को अपने अपने शब्दों में रचा।
पौराणिक विषयों पर अनगिनत श्रेष्ठ रचनाएँ देने वाले वरिष्ठ साहित्यकार एम.आई. राजस्वी जी ने भी
रामायण को अपने शब्दों में कहा है जो की निश्चय ही एक सुन्दर एवं सराहनीय प्रयास है। यूं तो रामायण में 24,000 श्लोक हैं किन्तु दोहा चौपाई से अलग बेहद सरल शब्दों में ,मात्र गद्य रूप में ही उन्होंने रामायण प्रस्तुत की है जो रामायण को उन लोगों के लिए भी पठनीय बना देती है जो इसे मात्र एक धार्मिक ग्रन्थ समझ कर दोहा ,चौपाई ,सोरठा,छंद आदि की क्लिष्ठता से बचते हैं परिणाम स्वरुप इसका अध्ययन नहीं करते।
राजस्वी जी ने भी रामायण के सांस्कृतिक
मूल्य एवं सांस्कृतिक
महत्त्व पर ध्यान केन्द्रित किया है। एवं
विशेष तौर पर उन खण्डों पर अधिक ध्यान केन्द्रित किया है जहाँ वाल्मीकि ने भी जीवन के आदर्श और शास्वत मूल्यों हेतु दिशा दी है। इसमें उन्होंने
राजा, प्रजा, पुत्र , माता, पत्नी, पति, सेवक आदि संबंधों का एक आदर्शस्वरूप प्रस्तुत किया है।
राम का चरित्र एक आदर्श महापुरुष के रूप में है, जो सत्यवादी, दृढ़संकल्प वाले, परोपकारी, चरित्रवान, विद्वान, शक्तिशाली, सुन्दर, प्रजापालक तथा धीर गंभीर पुरुष हुए हैं। इसी प्रकार सीता के आदर्श, संस्कारी तथा गौरवपूर्ण पत्नी-रूप को भी दर्शाया गया है। राम का भ्रात्र प्रेम प्रस्तुत रामायण में अत्यंत सरल एवं भावपूर्ण शब्दों में व्यक्त किया गया है।
भरत की राज्यपद के प्रति अनासक्ति, लक्ष्मण की भ्रात्र-सेवा
एवं हनुमान की स्वामि-भक्ति ये तीनों जीवन के सर्वोच्च
आदर्श रामायण में उपलब्ध होते हैं। वहीं सीता जी की पतिवृता आदर्श नारी की छवि निरुपित
की गयी है।
राजस्वी जी ने रामायण के सातों खंड को
अलग अलग बांटते हुए उनके भीतर की प्रत्येक विशिष्ठ घटना को बहुत ही सहजता से सरल
भाषा में सामने रख दिया है ।
“बालकांड” से प्रारंभ करते हुए वे प्रभु श्री
हरी के रामावतार में अन्तर्निहित कारण की
विवेचना करते हुए यह स्थापित करते हैं कि राम कोई सामान्य व्यक्ति नहीं वरन अवतरित
थे एवं उनका प्राकट्य पूर्व निर्धारित था। कथा को आगे बढाते हुए प्रभु शिव एवं सती की कथा
जो स्वयं में बहुत ही महत्वपूर्ण है, का वर्णन सरल सहज एवं संक्षेप में करते हैं
और फिर माता पार्वती की तपस्या व शिव
विवाह के प्रसंग का रोचक वर्णन प्रस्तुत करते हैं।
अयोध्या के महाराजा श्री दशरथ के राजमहल में महारानी कौशल्या
के गर्भ से श्री राम का जन्म व अन्य दोनों रानियों से
लक्ष्मण , भरत एवं शत्रुघ्न के जन्म के पश्चात बाल लीलाओं का चित्रण है जिन्हें देख
देख सभी प्रफुल्लित है सभी ओर हर्ष व्याप्त है आनंद ही आनंद है, समय खुशी- खुशी गुज़र
रहा है एवं समय के गुजरने के साथ जब चारों बालक कुमार
अवस्था को प्राप्त करते हैं तब
कुलगुरु की आज्ञा से उनका यज्ञोपवीत संस्कार कर उन्हें वशिष्ट जी के
गुरुकुल में पढ़ने के लिए भेज दिया जाता है।
वहां वे
गुरुजनों की सेवा करते हुए , विभिन्न
भयंकर राक्षस जो ऋषि-मुनियों को परेशान कर रहे थे उनका संहार कर ऋषि मुनियों से
आशीर्वाद प्राप्त करते हैं, इसमें राक्षसी ताड़का का वध
विशेष उल्लेख के साथ पुस्तक में दिया गया है, तो आगे
जाकर जब सीता जी के विवाह हेतु जनक नरेश से स्वयंवर
की सूचना प्राप्त होती है तब गुरुदेव की आज्ञा से राम लक्ष्मण दोनों भाई जनकपुरी
जाने के लिए उनके साथ प्रस्थान
करते हैं, वहीं राह में , सती अहिल्या के श्राप को विस्तार से बताते हुए सती अहिल्या के उद्धार
का प्रसंग वर्णित है।
जनकपुरी पहुंचने पर राम सीता की प्रथम मुलाकात , उनकी परस्पर आसक्ति
और उसके बाद स्वयम्वर स्थल पर रावण सहित अन्य समस्त दिग्गजों का धनुष उठाने में विफल होना अत्यंत रोचक एवं सरल रूप
में प्रस्तुत किया गया है। किंतु यहां
तनिक विस्तार की अपेक्षा है। श्रीराम
द्वारा प्रत्यंचा चढ़ाने के प्रयास में धनुष का टूटना
एवं अंततः प्रभु श्री राम जानकी विवाह
का भी सुंदर वर्णन पुस्तक में दिया गया है।
पुस्तक का दूसरा खंड श्री रामायण का द्वितीय
सोपान “अयोध्या कांड” है जिसमें जीवन के
सामान्य रूप को दर्शाया गया है जहाँ सुख
भी है एवं दुःख भी मिलन है तो वियोग भी, ऐसे ही
विभिन्न प्रसंगों के चलते हर्ष एवं विशाद का
मिला-जुला दृश्य प्रस्तुत किया गया है।
अयोध्या में जहां एक ओर श्री राम के राज्याभिषेक के लिए तैयारियां जोरों पर हैं
सर्वत्र हर्षोल्लास एवं उत्सव का वातावरण है सम्पूर्ण नगरी में ही उत्सव का माहौल
है, वही भविष्य में होने वाले अनर्थ के दृष्टिगत
देवताओं की चिंता का वर्णन है तो मंथरा द्वारा कैकेयी को
बरगलाने का सुंदर वर्णन किया गया,
कैकेयी जो कि पूर्व में सिर्फ भरत का राज्याभिषेक करवाना चाहती थी,
मंथरा के द्वारा भ्रमित कर दिए जाने के पश्चात भरत के निर्विघ्न रजा बने रहने के स्वपन को देखते हुए
राम का 14 वर्षों का वनवास मांग लेती
है। राजतिलक के प्रसंग के अवसर पर राम के वनवास की घोषणा एक ऐसा अप्रत्याशित घटनाक्रम है जो सभी को चकित
करते हुए आनंद उत्सव के रंग में भंग डाल देता है प्रभु श्री राम पिता श्री दशरथ की
आज्ञा का पालन करते हुए सीता जी के साथ वन हेतु प्रस्थान करने के लिए तैयार है
किंतु लक्ष्मण जी के विशेष अनुरोध के कारण वह भी उनके साथ ही जाते हैं ।
निषाद मल्लाह से भेंट के द्वारा ऊंच नींच के भेदभाव पर प्रहार
है व मानव जाति के लिए संदेश भी। प्रभु की मर्यादा
पुरुषोत्तम छवि को सुंदर रूप से प्रस्तुत किया गया है। भरत का शोक, और अयोध्या के सिंहासन पर श्री राम
की चरण पादुका रखकर भरत के द्वारा संपूर्ण सुख साधन आदि
का त्याग कर, राजपाट को चलाते रहने का वर्णन प्रस्तुत
किया गया है जो रोचक बन पड़ा है ।
प्रस्तुत प्रसंग में मां सरस्वती के प्रभाव में आकर कैकेयी, महाराजा दशरथ को उनके द्वारा दिये गए वचन स्मरण करवाना चाहती हैं व एक वरदान द्वारा अपने कोख जाए भरत को राजपाट दे महाराज दशरथ का उत्तराधिकारी बनवाना चाहती हैं , वही अपनी दासी मंथरा के सुझाने पर भगवान श्री राम के लिए 14 वर्ष का वनवास भी मांग लेती है। यह राजनीतिक कुटिलता पूर्ण चाल इस परिप्रेक्ष्य में थी कि यदि श्री राम जिनका आम जनता में बहुत प्रभाव है बिना राजपाठ के नगरी में उपस्थित रहेंगे तो जनाक्रोश भड़क सकता है, जो भरत को निर्विघ्न राजा बने रहने में समस्याएं उत्त्पन्न कर सकता है उन्हें मर्यादा का पालन करते दिखाते हुए नगरी से बाहर भेज दिया जाए जिस से सभी पक्ष को साधने में मदद मिल जाती। यह मांग करने के बाद में कैकेयी का कोप भवन में जाना एवं उसके पश्चात श्री राम व सीता का वन गमन हेतु प्रस्थान करना , नगर में शोक का वातावरण नगरवासियों का विलाप इत्यादि दृश्य वास्तव में ह्रदय विदारक हैं।
राह में केवट से उनका मधुर मिलन और पीछे अयोध्या नगरी में
एक दु:खद पहलू जुड़ जाता है जब महाराजा दशरथ
पुत्र विछोह के इस सदमे को बर्दाश्त ना कर पाने के कारण परलोक गमन कर जाते हैं। आगे चलते हुए हम
देखते हैं बीच-बीच में सुंदर एवं कथावस्तु की बेहतर प्रस्तुति हेतु चौपाइयों का यथोचित
उल्लेख किया गया है भरत का कैकेयी के प्रति क्रोध अथवा राम भरत का
मिलाप सभी दृश्यों को सुंदर एवं सरल भाषा में प्रस्तुत किया गया है भाव सहज ही रखे
गए हैं। किसी भी स्तर पर क्लिष्टता अथवा
अलंकरण करने के प्रयास नहीं किये हैं। पुस्तक
पढ़ते हुए राम कथा का श्रवण करने के सामान ही आनंद प्राप्त होता है।
रामायण का अगला खंड “अरण्य
कांड” है जहां प्रभु श्री
राम के वनवास का मनोहारी एवं सुंदर वर्णन किया गया है जहाँ एक ओर शुरुआत में ही इंद्र पुत्र जयंत की
धृष्टता के विषय में विस्तार से बताया गया है की किस प्रकार जयंत ने जब श्री राम को एक
सामान्य पुरुष की भांति वन पुष्पों से सीता माता का श्रृंगार करते देखा तो उसे उन पर संदेह हुआ की क्या वे वाकई श्री हरि, विष्णु के अवतार है और उसने जाकर सीता जी को
पैर में चोंच मार दी जिसके फलस्वरूप राम ने उसे दंड दिया।
श्री राम जानकी का अनुसूया जी के आश्रम में रात्रि विश्राम एवं अन्य ऋषि
मुनियों के आश्रम पर जाकर उनके दर्शन एवं सत्संग करना, प्रभु
का पंचवटी पर निवास एवं संपूर्ण चित्रकूट
को एक सुंदर व्यवस्था देकर उन्होंने बहुत ही मनोरम दृश्य उत्पन्न कर दिया है,
वहीं शूपर्णखा का विवाह प्रस्ताव आने पर उसका अंग भंग किया जाना
एवं इसके बदले के रूप में रावण द्वारा मारीच को स्वर्णमृग बनाकर सीता हरण का
मार्मिक वर्णन भी इसी सोपान में है जिसे राजस्वी जी ने बड़े ही सरल एवं सहज रूप में
प्रस्तुत करा है ।
जटायु का पराक्रम और शबरी की भक्ति का प्रसंग मन को झंकृत कर देने वाला है पश्चात शूपर्णखा का पहले प्रभु राम से एवं पश्चात श्री लक्ष्मण से प्रणय प्रस्ताव एवं उसके अंग भंग करने के पश्चात उसका रावण के दरबार में पहुँच रावण को कठोर वचन कह लज्जित करवाना, जिससे क्रोधित होकर रावण ने सीता जी का हरण करने का कुचक्र किया, यह सभी घटना क्रम लघु अध्यायों के रूप में प्रथक प्रथक लिखे गए हैं जो जहाँ एक और कथा को समझने में मददगार हैं वहीं पाठन को भी बोधगम्य बनाते हैं।
सीता हरण का दृश्य बहुत विस्तार से दर्शाया गया है जहाँ जटायु रावण संवाद का
विस्तृत वर्णन है जब जटायु रावण को समझाते हुए कहते
हैं कि श्री राम चराचर के स्वामी है उनसे
बैर करके क्यों अपने कुल और वंश को नष्ट करने पर तुला हुआ है तब रावण का उनकी
बातों को अनसुना कर दिया जाता है व सीता
जी को लेकर लंका की ओर प्रस्थान कर जाता है।
“किष्किंधा कांड” में सीता जी के वियोग में व्याकुल राम जी की हनुमान
जी से भेंट और सुग्रीव से मित्रता का रोचक प्रसंग दिया गया है। राम द्वारा बाली का वध और उसे दिए गए उपदेश इस सोपान का का सबसे सुंदर संवाद है ,जटायु के भाई संपाती का
मिलना, सीता की खोज में हनुमान सहित वानरों, भालुओं का प्रस्थान , हनुमान का लंका
में प्रवेश अदि अत्यंत रोचक प्रसंग दिए गए हैं श्री हनुमान जी से प्रभु श्री राम
की भेंट , बाली का अंत आदि समस्त अत्यंत रोचक प्रसंग हैं।
“सुंदरकांड” श्री रामायण का पांचवा सोपान एवं सर्वाधिक पढ़ा
जाने वाला सोपान कहा जा सकता है राम कथा के इस वर्णन में राम प्रत्यक्ष रूप से तो
नहीं है व विशेष तौर पर यह खंड श्री हनुमान जी की कीर्ति का गुणगान करता है। इसमें हनुमान जी की सीता जी से भेंट होती है व
वे रावण के पुत्र अक्षय कुमार का संघार एवं लंका दहन कर ते हैं। वे रावण को भी जो प्रभु प्रेरणा से समझाते हैं
रावण को उसकी पत्नी मंदोदरी भी समझा रही है किंतु वह मंदोदरी की बात हवा में उड़ा
देता है।
अहंकार से ग्रस्त रावण को जब राम भक्त भाई विभीषण द्वारा समझाया
जाता है तथा राम से शत्रुता न करने की सलाह दी जाती है ,तो वह उसका भी तिरस्कार एवं
अपमान कर उसे नगरी छोड़कर जाने के लिए कह देता है. इसी सोपान में एक दुर्लभ असंभव
कार्य जो वर्तमान में भी शोध का विषय है
एवं जिसके होने अथवा ना होने को लेकर के अभी भी कई खोज चल रही है वह समुद्र पर राम
सेतु का निर्माण.
राम कथा का सार जानने हेतु लंका कांड का पाठन श्रेष्ठ है क्योंकि
राम इसी सोपान में पूर्ण होते हैं . राम अवतार हैं उन्हें दैविक शक्तियों का उपयोग
नहीं करना है उन्हें मानव रूप में मानवता के लिए आदर्श प्रस्तुत करने है व नीति और
राजनीति का समावेश रखना है। बाली पुत्र
अंगद का रावण से संवाद, हनुमान का संजीवनी बूटी लेकर के आना वहीं रावण मंदोदरी का
संवाद कुंभकरण व मेघनाथ का वध अहिरावण का पराभव एवं राम रावण का प्रथम युद्ध इस भाग के प्रमुख अंश हैं .
रावण का भीषण पराक्रम
और अंततः रावण की मृत्यु के रोचक प्रसंग के अतिरिक्त विभीषण का राज्याभिषेक सीता की
अग्निपरीक्षा और राम लक्ष्मण का सीता का अयोध्या की ओर गमन भी इसी सोपान के प्रसंग
हैं।
“उत्तरकांड”, जैसा की नाम से ही स्पष्ट हो जाता है यह अंतिम
भाग है , इस समापन सोपान में राम का वनवास समाप्त होने पर अयोध्या लौटने की
प्रतीक्षा में भरत की विकलता का चित्रण है . राम की सभी ऋषि-मुनियों से भेंट कर उनसे विदा
लेना , गुह राज निषाद एवं केवट से वापसी में अत्यंत प्रेम भाव से पुनः भेंट के प्रसंग अत्यंत मर्मस्पर्शी हैं . गुरु वशिष्ठ
एवं भरत के बीच संवाद ,हनुमान द्वारा भारत को राम के सकुशल आने की सूचना दी जाना व
अयोध्या में चहुँ ओर हर्षोत्सव , व राम का
भरत से मार्मिक मिलाप ह्रदय को द्रवित कर
देते हैं . राम का राज्याभिषेक और सुग्रीव विभीषण आदि की विदाई के साथ राम राज्य
की स्थापना के दृश्य प्रस्तुत किए गए हैं और अंततः श्री राम की गौरव गाथा का समापन
दिया गया है.
सम्पूर्ण पुस्तक मूल रामायण को आसान भाषा में एक सुंदर एवं
रोचक कथानक के रूप में समझती हुई आगे चलती है।
ना तो कहीं भाषा में क्लिष्टता हो दिखती है न ही वास्तविकता से निकटता
दर्शाने हेतु संस्कृत के कठिन
शब्द। चंद स्थानों पर जहां अत्यावश्यक हुआ
है मात्र वहीं मूल चौपायी अथवा दोहा उद्धरित कर दिया गया।
रामायण को कठिन ग्रंथ अथवा धार्मिक ग्रंथ मान कर न पढ़ने वालों
को अवश्य ही इसे पढ़ना चाहिए साथ ही
जिन्होंने मूल रामायण पढ़ी हुई है वे पढ़ें तो उन्हें अत्यंत आनंद प्राप्त होगा
क्योंकि छोटे छोटे खंड बनाकर उसके अंतर्गत एक रोचक घटना क्रम अथवा दृश्य या संवाद प्रस्तुत
कर दिया है। दोहा चौपाई , छंद, सोरठा , इत्यादि कहीं भी बधारूप में नहीं प्रगट
होते अतः सामान्य पौराणिक कथानक मानते हुए भी इसका पाठन आनंद दायी है।
रामायण आज भी उतनी ही प्रासंगिक है जितनी तब थी जब की उसकी रचना
की गयी। रामायण की सीख “बुराई पर हमेशा अच्छाई की जीत” एवं अच्छे कर्म उच्च स्तर तक पहुँचने के साधन हैं और बुरे कर्म विनाश की ओर ले जाते हैं, वर्तमान
युग में पहले से कहीं अधिक वांक्षित हैं। रामायण में कथानक के माध्यम से ही दर्शा दिया गया की सत्य का अनुसरण करने
वालों के तो पक्षी और जानवर भी सहायक होते
हैं, लेकिन गलत एवं असत्य का रास्ता चुनने वालों के
लिए स्वजन भी मुख मोड़ लेते हैं।
रावण, शक्तिशाली है, महान शिव भक्त है, एवं स्वयं प्रभु राम
और हनुमान भी उसकी विशिष्ठ्ताओं की प्रशंसा करते हैं, लेकिन वह स्वयं पर-स्त्री पर आसक्ति कर
खुद के नाश की पटकथा लिखता है। राम और सीता अपने
सांसारिक रूप में दिखलाते हैं कि मानवीय दुःख अपरिहार्य है और सभी को प्रभावित
करता है, फिर चाहे किसी का स्वभाव देश दशा एवं पदवी कुछ भी
क्यों न हो.
राम का जन्म समाज को जीवन शैली, व्यव्हार वर्ताव बतलाने के
लिय हुआ है वे मर्यादा पुरषोत्तम यूं ही नहीं हैं , वे भी निराशा में टूट जाते
हैं। भिन्न अवसरों पर प्रभु राम की प्रतिक्रिया केवल कठिन परिस्थितियों में एक
व्यक्ति की मनोवैज्ञानिक वास्तविकता को दर्शाती है, वे मानव रूपमें सिर्फ मानव के
ही तरह से आचरण करते हैं। राम के करुणा और
दया के गुण, सभी
की मदद करने की उनकी तत्परता, आम जन में दोषों को क्षमा करने
की उनकी प्रकृति और सत्य का पालन इस भव्य महाकाव्य के आधार के रूप में खड़ा है।
संकट में पड़े लोगों की रक्षा करने की प्रभु की प्रतिज्ञा
मानवता के लिए आशा का एक और सीधा संदेश है। जब सुग्रीव, लक्ष्मण और अन्य
लोगों के बहुत विरोध के बावजूद राम ने विभीषण को स्वीकार कर लिया, तो उन्होंने राक्षसों की ओर से किसी भी संभावित बेईमानी के बारे में उनकी
शंकाओं को दूर कर दिया और कहा कि भले ही वह विभीषण के रूप में रावण हो, वह उसकी रक्षा करेंगे। भगवान राम दया, करुणा
और प्रेम के प्रतीक हैं। उन्होंने बुद्धिमत्ता और धैर्य से भले ही विलासिता पूर्ण राजमहल के जीवन का त्याग
किया किन्तु अंततः अन्ततः
श्रीराम ने राक्षस राज रावण पराजित हुए प्रभु ने रावन वध किया सीता का उद्धार किया एवं धर्म की पुनर्स्थापना की।
महाकाव्य की इस सुन्दर रूप में प्रस्तुति राजस्वी जी का सराहनीय
कदम है, प्रत्येक घटना आम व्यक्ति के लिए
कुछ न कुछ सन्देश है , रामायण को सहज रूप से समझने हेतु यह पुस्तक निश्चय ही बेहद
मददगार है।
सविनय
अतुल्य
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें