Batao Manu By Sushma Singh
बताओ मनु
द्वारा         :- सुषमा सिंह 
प्रकाशन:- हिन्द युग्म 
सनातन धर्म के अनुसार
मनु संसार के प्रथम योगी पुरुष थे। शास्त्रों के अनुसार दुनिया में सबसे पहले आना
वाला मनुष्य मनु  को  ही कहा गया है। वह जगत पिता ब्रह्मा जी के मनस
संकल्प से उत्त्पन्न हुए थे एवं मनुष्यों की सामाजिक तथा धार्मिक विधि संहिता का
संयोजन किया, जिसे “मनुस्मृति”
के नाम से जाना जाता है।  प्रथम मनु के संग
प्रथम स्त्री थी शतरूपा। । इन्हीं प्रथम पुरुष और प्रथम स्त्री की सन्तानों से
संसार के समस्त जनों की उत्पत्ति हुई। मनु की सन्तान होने के कारण वे मानव या
मनुष्य कहलाए। । शास्त्रों में मनुस्मृति को सबसे महत्त्वपूर्ण ग्रंथ कहा जाता है।
हालाँकि बहुधा उसकी गलत व्याख्या होने से अर्थ का अनर्थ ही होता रहा हैं।
मनुस्मृति में स्त्री के आगमन, चरित्र, उसके हाव-भाव सहित तमाम वह बातें जो एक स्त्री को परिभाषित करती हैं,
बताई गई हैं। 
शीर्षक :- 
       मनु
कहते हैं कि स्त्री को मर्यादाओं का पालन करना चाहिए क्योंकि एक मर्यादा में बंधी
स्त्री ही वास्तव में स्वतंत्रता का आनंद ले सकती है।
मनु स्मृति की व्याख्या
को लेकर मतभेद है ।  उनके द्वारा लिखे गए
छंद की गलत एवं भाव से विपरीत व्याख्या होने के कारण अनेकानेक प्रकार की भ्रांतियां
उत्त्पन्न करते हैं एवं एक बड़े वर्ग द्वारा मनु को स्त्री विरोधी ही  निरुपित कर दिया गया जो की उचित न होते हुए वास्तविकता
से परे है।  प्रस्तुत पुस्तक भी
“मनुस्मृति” की गलत व्याख्याओं के आधार पर मनु को स्त्री की दुर्दशा हेतु ज़बाब देह  ठहराती हुयी मनुस्मृति के रचयिता मनु से कुछ
सवाल पूछती नज़र आती है एवं  वही
पुस्तक की समस्त कविताओं का रुझान भी दर्शाती है जहां नारी की दुर्दशा की बातें
प्रमुखता से हैं। सर्वथा उपयुक्त शीर्षक का चयन किया गया है।  
कवियत्री:- 
संवेदनशील कवियत्री
सुषमा सिंह अपने दिल में भावनाओं की उथल-पुथल को बांध कर सीमित करने की पक्षधर
नहीं हैं एवं अपनी प्रशासनिक अधिकारी की व्यस्ततम जिंदगी में से भी अपने भावों  के इस ज्वार भाटे को कागज़ पर उतार लेने हेतु समय
निकल ही लेती हैं। वे नारी मन को बहुत गहरे से समझ कर अपनी रचनाओं के द्वारा भावों
की सुन्दर अभिव्यक्ति करती हैं।     
शैली :- 
         
कविताओं में विचारों का
तीव्र प्रवाह लक्षित होता है।  एवं कविता
को कहीं भी शब्द सीमा में नहीं बंधा गया है, तीक्ष्ण कटाक्ष, क्रोध-प्रतिरोध, भावनाओं का तीव्र आन्दोलन कहीं नारी के जुझारू मन को जागृत करती तो कहीं
समाज के निर्णयों को ठुकराने हेतु समझाइश देती नज़र आती हैं।  उनकी कविता नारी को समाज के अत्याचार के विरुद्ध
डट कर खड़े होने व एक समृद्ध वैचारिक संपदा युक्त ऐसी स्त्री बनने हेतु प्रेरित
करती हैं जो पुरातन दमनकारी नीतियों के बंधन को तोड़ कर अपने सपने और अपना जीवन
अपने तरीके से जीना चाहती है।    
पुस्तक से :-  
नारी जागृति हेतु आव्हान करती एवं
स्वयं को ज़ुल्मों का प्रतिरोध करने का सन्देश देती  है कविता “तू आज फिर क्यो उदास है” 
"तू बन क्रांति की
मशाल जिसे कभी बुझना नहीं है
और 
तू मत बन किसी का शिकार और खिलौना /
तू भी खेल ऐसा खेल / जिसमें शह हो तेरी और मात किसी और की / तू उठ तू चल / तू दौड़
और बेतहाशा दौड़।
वहीं  बताओ मनु में वे मनु की पत्नी को भी
साक्षी बना लेना चाहती है वे मनु के निर्देशों पर सवाल उठाते हुए कहती हैं कि :
मुझे इसमें साजिश की बू आ रही है / इसलिए
मौलिक दस्तावेज़ चाहिए 
और वह दस्तावेज़ शतरूपा से / प्रमाणित
होने चाहिए।  
वहीं  मनु के कथन, की जीवन की विभिन्न अवस्थों में नारी को क्रमशः पिता पति अथवा पुत्र के
संरक्षण में होना चाहिए के दृष्टिगत उनका क्रोध फूट पड़ा है मनु पर, और कहती हैं की,
बताओ मनु / क्या तुमने / शताब्दियों
पहले सुन लिया था /
नारी शक्ति की पगध्वनियों को / और
तुम  डर गए थे । 
वहीं  एक कविता “मुझे चाहिए अपनी देह पर पूरा
अधिकार” में कवियत्री लिखती है की 
मैं अपनों की ही उपेक्षा / और
तिरस्कार का इतिहास हूँ 
अपने मन आत्मा और देह पर / अपने ही
अधिकार के विरुद्ध 
अनेकानेक हमलों का शिकार हूँ ।  
प्रश्न केवल रात में / अकेले सड़क पर
घूमने 
और चमकते हुए / तारो के  गिनने का नहीं है
हर निर्णय में/ दोयम दर्जे की नागरिकता ही / मेरी पहचान है।
  
एक प्रेरणा देती हुयी किन्तु साथ ही
सामाजिक व्यवस्था पर तंज़ भी करती हुयी कविता है “ लड़की तुम जीत सकती हो”
लिखती है कि :
लड़की / तुम्हारी दुनिया अंधकार में
डूबी है 
तुम इसको आलोकित कर सकती हो 
बहुत आसान है तुम्हारे लिए / लेकिन
सबसे कठिन है 
खुद मशाल बनकर / अपने जैसे औरों के
लिए 
एक मिसाल बनकर जीना।  
समाज में अकेली लड़की का घर से
बाहर  जाना कितना मुश्किलों भरा है दर्शा
रही है कविता “जाकर आती हूँ”
लड़की की आँखों में सपने हैं / जो तलाश
रहे हैं रास्ता 
अपने मूर्त रूप लेने के लिए / लड़की
योग्य है 
तो जिंदगी में नए जोश और उमंग को
दर्शाती है कविता “इक्कीसवीं सदी” वहीं  नारी मुक्ति पर 
तंज़ है कविता “वजूद”  चंद
पंक्तियाँ प्रस्तुत हैं :
दूसरी स्त्री ने मांगी / अपनी आज़ादी /
अपने फैसले  
अपनी अस्मिता / और अपना वाज़ूद / अब वह
कहीं नहीं दिखती 
बेहद सुन्दर तरीके से पौराणिक गाथाओं
के सन्दर्भ देते हुए नारी मन की बाहर  आने
को बेताब दमित इक्षाएं । तो पति को ही उसके व्यवहार के कारण  आतंकवादी निरुपित करती है कविता “आतंकवादी”
जो करता है  मेरा शारीरिक, मानसिक, आर्थिक और भावनात्मक शोषण 
वहीं औरत की वास्तविक स्थिति दर्शाती
कविता है “औरत”
“औरत / तुम क्या हो/ क्या तुमने कभी
सोचा 
तुम स्वतंत्र नहीं हो कुछ भी करने के
लिए 
तुम्हारे ऊपर चढ़ा हुआ है उसके
एकाधिकार का आवरण 
अक्षम्य होती है उसके लिए / तुम्हारी
छोटी सी भूल।         
समीक्षात्मक टिप्पणी :- 
·                   
कवितायेँ नारी स्वातंत्र्य, एवं नारी पर अत्याचार विरोधी हैं जो
शब्दों द्वारा भावनाओं के अभिव्यक्त करने में सफल रहीं हैं । 
·                   
मनु स्मृति  की व्याख्या पर
आधारित कविताये, व्याख्याओं से उत्पन्न सहज विरोध एवं प्रतिरोधात्मक भावना का
सर्जन करती हैं जिसे उन्होंने बखूबी प्रगट किया है। 
·                   
कविताओं में वह आग है जो नारी द्वारा  सदियों से दमन कारी नीतियों एवं कृत्यों को
बर्दाश्त करते हुए अब बाहर आने को बेताब है।  
·                   
नारी मन की बदला लेने हेतु एवं अपने हक की लडाई हेतु उठ खड़े होने
की भावना को शब्द रूप दिया गया है वह उस आग को अपनी पूरी सम्पूर्णता में प्रस्तुत
करने में सक्षम हुयी है।  
·                   
कविताओं
को कवि ह्रदय के भावों की सुन्दर अभिव्यक्ति मान कर किसी भी वाद विवाद से परे
स्वीकार किया जाना चाहिए तथा नारी स्थिति पर उनकी रचना का स्वागत किया जाना चाहिए।
   
· मनु को संबोधित कविताओं के आलावा भी प्रस्तुत ग्रन्थ की अन्य कवितायेँ नारी की आवाज़ बुलंद करती प्रतीत होती हैं ।
निष्कर्ष:- 
किसी विषय पर विचार
सामान दिशा में हों न तो आवश्यक है न ही उचित।  मनुस्मृति भी इसी पक्ष विपक्ष वार्ता का एक
उदाहरण है।  टिप्पणीकारों द्वारा  मनु स्मृति के छंदों की गलत रूप से व्याख्या प्रस्तुत
कर देने से उसे स्त्री के चरित्र पर मनु द्वारा आघात मान लिया जाता है। वास्तव में
मनु ने स्त्री के अधिकारों पर खास प्रकाश डाला है एवं  सत्य यही है कि मनु द्वारा स्त्री को संसार की
बेहद खूबसूरत एवं आदरणीय रचना माना गया है।  मनु
की नज़र में  स्त्री ही पूरे समाज को बांध
कर रखती है। किन्तु साथ ही मनु यह भी कहते हैं कि यदि स्त्री को जरूरत से ज्यादा
स्वतंत्रता प्रदान कर दी जाए तो वह उसका गलत इस्तेमाल भी कर सकती है।
मनुस्मृति में कहा गया है कि हमेशा
कन्या के योग्य वर की तलाश करनी चाहिेये  न
कि वर के योग्य कन्या की । मनु कहते हैं कि यदि अभिभावकों को कन्या के योग्य वर की
प्राप्ति नहीं हो रही है तो उन्हें कभी भी अयोग्य वर से अपनी कन्या का विवाह नहीं
करवाना चाहिए। इसके साथ ही मनु कहते हैं कि कन्य स्वयं भी अपने लिए वर चुनने के
लिए सक्षम है। साथ ही  मनु द्वारा स्त्री
की शिक्षा को भी एक बड़ा महत्व दिया गया है जो हमें समझने की जरूरत है।  
स्त्री की स्वतंत्रता का सम्मान  करते हुए मनु कहते हैं कि एक कन्या को भी वह सभी
अधिकार हासिल हों जो एक पुरुष को होते हैं। यदि एक पुरुष स्वयं अपने लिए कन्या का
चुनाव कर सकता है तो एक स्त्री को भी अपने लिए वर चुनने का सम्पूर्ण अधिकार है।
“जहां स्त्रियों का
सत्कार एवं सम्मान होता है, वहीं देवता वास करते हैं”, मनुस्मृति में दिए गए इस श्लोक से उनका दृष्टिकोण पूर्णतः स्पष्ट हो
जाता है । 
सविनय,
अतुल्य 
 
 
 
 




 
 
 
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