Pile Half Paint Wali Ladki By Arun Arnav Khare

 

पीले हाफ पैंट वाली लड़की

द्वारा     : अरुण अर्णव खरे

प्रकाशक: हंस प्रकाशन

क्यू पढ़ें :-

साहित्यिक गरिष्ठता से परे, स्वस्थ मनोरंजन, एवं हल्का फुल्का चिंतन करने को दिशा   प्रदान करती, मध्यम वर्गीय समाज के सामान्य जन जीवन से लिए गए सुन्दर किस्से हैं, रोचकता के संग शब्दों का चयन एवं वाक्य विन्यास भी सहज है। 


शीर्षक:-

यूं तो प्रस्तुत कथा संग्रह की प्रत्येक कहानी अपने आप में विशिष्ठ है, एवं उच्च कोटि का स्वस्थ मनोरंजन प्रदान करने में सक्षम है, किन्तु एक बेहद ही रोचक एवं तनिक मार्मिक कहानी है “पीले हाफ पेंट वाली लड़की” जिसे पढ़ने के पश्चात जहाँ उस शीर्षक की सार्थकता स्पष्ट हो जाती है वही उसे पुस्तक का शीर्षक बनाने हेतु क्यूँ चुना गया इस बात में भी कोई संशय नहीं रह जाता, क्यूंकि वह कहानी है ही इतनी विशेष। वैसे यह पूर्व में भी कह चुका हूँ की लेखक अपनी किस रचना को प्रमुखता देना चाहता है यह पूर्णतः उसी के स्वविवेक पर एवं व्यक्तिगत पसंद पर निर्भर करता है। अन्य   किसी का दखल मेरी दृष्टि में सर्वथा अनुचित एवं अवान्क्ष्नीय  ही कहा जायेगा। 

 

कथाकार:-

अरुण अर्णव  खरे सुप्रसिद्ध,वरिष्ठ साहित्यकार हैं जिन्होंने साहित्य की अमूमन  प्रत्येक विधा को अपनी सुन्दर कृतियों से समृद्ध किया है। किन्तु सरल कहानी लेखन एवं चुभते  हुये  व्यंग लेखन में उनके सानी विरले ही होंगे। व्यंग्य लेखन में देश भर में उनका नाम अत्यन सम्मान से प्रमुखता के साथ लिया जाता है।  देश की शायद ही ऐसी कोई प्रतिष्ठित पत्र पत्रिका हो जिसनें उनकी रचनाएँ अपने पत्र में प्रकाशित कर स्वमान न बढाया हो।  

भाषा शैली :-

मुख्यतः आम जन ही उनकी रचनाओं के प्रमुख पात्र होते हैं साथ ही घटनाक्रम भी आम आदमी की जिंदगी से जुड़े हुए होने के कारण उनकी प्रस्तुति की भाषा भी  आम जन की भाषा होती है सरल  एवं सहज, जो पाठक को पात्र से जोड़ने में एक पुख्ता सूत्र का कार्य बखूबी निभाती है। आवश्यकता अनुसार क्षेत्रीय भाषा का भी शुद्ध एवं सुन्दर प्रयोग करते है,  शैली में भी कहीं आडम्बर अथवा बनावटी पन  नहीं दीखता, सहज प्रवाह से जो बात पात्र के द्वारा  कही जा रही है वही कहानी में संवाद रूप में लिपिबद्ध  हो जाती है। उसे सुन्दर बनाने की लिए कोई अतिरिक्त प्रयास नहीं हैं,   तो  विशेषणों से सजाया गया है और और न ही अलंकारों का अनावश्यक प्रवेश है। कहानियों के विषय चुनने हेतु कहीं भी कोई विशेष आग्रह उनकी रचनाओं में प्रतीत नहीं होता बेहद सहजता से आम मध्यमवर्गीय परिवार का कोई विषय उनकी कहानी का  मुख्य हिस्सा बन जाता है जिसे वे बेहद खूबसूरत तरीके से पेश कर देते हैं। ऐसा प्रतीत होता है मानो विषय स्वतः उन्हें तलाश कर लेते हैं। हाँ कहीं कहीं सुन्दर वाक्य अवश्य बीच में जहाँ सहजता से आ सके, वहां उन्हें स्थान दिया गया है।

 

प्रस्तुत कथा संग्रह से:-

हारेगी नहीं आनंदिता :

              मानवता के उच्चतम एवं निम्नतम स्तर को एक ही कथानक में बेहद सधे हुए अंदाज़ में प्रस्तुत करती हुई कृति है। कभी वर्तमान को जीती हुयी  तो कभी थोड़ी यादों को कुरेदती हुई, पुराने दोस्तों से मिलती और पुरानी यादों के साथ साथ पुराने ज़ख्मों को फिर हरा  करती हुई सुंदर कृति है। सरल व सहज वाक्य विन्यास तथा अलंकारिक भाष के अनावश्यक  प्रयोग से बचते हुए, सहज प्रवाह लिए हुए आसान भाषा में रोमांचक प्रस्तुति दी है जिसका अकल्पनीय अंत अनायास ही पाठक को झकझोर देता है। नारी प्रधान कथानक है जो अत्याचार के खिलाफ आवाज़ तो नहीं उठा सकी किन्तु उसने अपने जुझारूपन से उस अत्याचार के गंभीर परिणामों से ज़बरदस्त संघर्ष किया है जीवन के हर मोड़ पर, और अपना एक सुखी परिवार बनाया। प्रस्तुत कहानी में इंसानी फितरत के विभिन्न रंग भी  देखने को मिलते है।

ईर्ष्या में व्यक्ति कितना गिर सकता है तो वहीं संस्कार किस तरह से भविष्य में पीढ़ी दर पीढ़ी प्रगमन करते हैं, अर्थात पिता से पुत्र में आते हैं  यह भी स्पष्टतः  परिलक्षित होता है। 

वही साधारण सी मुलाकात का  प्यार में बदलना और विपरीत परिस्थितियों में  भी जीवन भर साथ निभाना  निर्मल हृदय के  सच्चे प्रेम को दिखलाता है। मनवांक्षित पाने के लिए व्यक्ति की कुछ भी कर गुजरने की ओछी सोच, एवं उस के घृणित परिणाम समाज को बहुत कुछ सोचने को मजबूर करते हैं।

 

“तुम बुद्धू हो डियर” :-

सोशल मीडिया की दोस्ती जैसे जी का जंजाल बन जाये और जब तक पता  चले हो सकता है की सब कुछ लूट चुका हो, कुछ ऐसा ही संदेश देती हुई कहानी है “तुम बुद्धू हो डियर” जहां एक नियिजित योजना बद्ध तरीके से पहले दोस्ती, फिर अंतरंगता, और  फिर विश्वास बन जाने पर अपने कुत्सित मंसूबों को अंजाम देना  और वह भी सब कुछ उन तरीकों से जिन से बचने की नसीहत लगभग हर जानकार देता है किन्तु  फिर भी वे गलतियां की जाती हैं और इस तरह के कार्यों में लिप्त जालसाज  उनका फायदा उठा लेते है। सरल भाषा और सहज ही बोधगम्य शैली में बिना किसी अतिरिक्त प्रयास के कहानी दिमाग में अपनी जगह बनाती चली जाती है। पूर्व के प्रेम के  संस्कार युक्त वर्ताव एवं  पश्चिम के प्रेम की उन्मुक्तता, जो की अपने मोहपाश में बाँधने के एक साधन के रूप में प्रयुक्त होती है दर्शायी  गयी है। कहीं कुछ सुंदर वाक्य थोड़ी सी अलंकृत भाषा के साथ आये है जो रचना को आकर्षक बनाते हुए पाठन हेतु प्रेरित करते हैं।

“चरखारी वाली काकी” :-

बेहद अपनत्व से भरी मार्मिक कहानी जो एक संस्मरण होने का आभास  अधिक करवाती है। क्षेत्रीय भाषा का प्रयोग  सुंदर है साथ ही जिन स्थानों के विषय मे या जो कहानी में आये है वास्तविक हैं, अतःपाठक से करीबी एवं सहज सम्बद्ध हो जाते हैं। नारी प्रधान  एवम भावना केंद्रित कथानक है। किसी के द्वारा कहे गए तीखे शब्द किसी के  दिल पर लग कर कैसा अनर्थ कर सकते हैं शोचनीय है

यहां एक ओर दो स्त्रियों के बीच कोई रिश्ता न होते हुए भी सगे से बढ़ कर संबंध होना वहीं अपनी औलाद न होने पर भी अपने बच्चे से बढ़ कर प्यार देने के दृश्य सुंदर हैं

“पुनर्जन्म” :

आत्मा के रिश्ते  सदैव खून के रिश्तों से बड़े होते हैं रिश्ता आत्मा से होता ही न कि नाम से। रिश्तों को नाम हमारे द्वारा दिए जाते है, किंतु कुछ रिश्ते इतने अधिक पवित्र और अनुपम होते हैं कि वे नाम से बहुत ऊपर उठ जाते हैं। उन्हें पहचानने के  लिए किसी नाम की  दरकार ही  नही रह  जाती। ऐसे ही एक रिश्ते की कहानी है “पुनर्जन्म” दूर विदेश में संस्कारयुक्त भारतीय परिवार से वहीँ के एक बालक मिलन जो की वहां के लिए बहुत सामान्य एक बिखरी हुई फैमिली से था सब और से अकेलापन उसे घेरे हुए था जिसे न तो माँ  का  का प्यार मिला न ही  पिता का और जब हिंदुस्तानी परिवार  से उसे प्यार मिला तो मानो वह बालक पुनर्जीवित हो गया किन्तु आगे कहानी ने कुछ गंभीर मोड़ लिए और तब रिश्तों पर त्याग की जो कहानी कही गयी वह एक मिसाल है कैसे एक मासूम प्यार समझता है और धीरे धीरे जुड़ता चला जाता है दुलार भरे माँ  के स्पर्श से, बहन के प्यार से, और भाई सामान  दोस्त के लगाव से। बेहद मर्म स्पर्शी रचना .

‘पीले हाफ पैंट वाली लड़की”

बेहद खूबसूरती से रोचकता बनाये रखते हुए एक बिलकुल ही भिन्न कथानक में कहानी कह गए हैं .  साथ ही  बिल्कुल ही अपत्यशित अंत भी, जो कि कुछेक स्थानों  पर बेहद मार्मिक भी है  और कहीं न कहीं कुछ असहज भी कर जाती है । पाठक, गला भर आया जैसा कुछ महसूस करते हैं उस जगह से गुजरते हुए। जीवन में सकरात्मक रहने की शब्द रुपी प्रवचनात्मक सलाह यूं तो बहुत दी जाती है किन्तु उसको अमलीजामा कम ही पहना पाते हैं और सलाह को स्वयं के जीवन में उतरने वाला या उसका पालन करने वाला तो  शायद ही कोई मिले। स्वयं ज़िंदगी के अंतिम छोर पर खड़ी वह लड़की, सब कुछ जानते हुए भी सकारात्मक रही, एवं निरंतर सकारात्मकता फैलाती  रही। व्यक्तिगत तौर पर बिना मिले ही कैसे अनजानों को अपना बना लेने का खूबसूरत हुनर है उसके पास और बातें करते करते कैसे सब की प्रिय बन गयी किसी चलचित्र के मानिंद प्रस्तुति है। उसकी विदा का दृश्य  बेहद मर्मस्पर्शी है। बेहद सहजता एवं रोचकता से भरपूर  अत्यंत गंभीर रचना सृजित की है।

 

“मीठी इलायची” :

नारी का एकाकी जीवन, एकाकी महिला द्वारा बच्चे को अकेले पालने की जिम्मेवारी, व समाज की गंदी नज़रें और उस सब पर  एक  नादान बालक की समझ का फेर कैसी मुश्किल ले आया है यह दर्शाती है कहानी “मीठी इलायची”। अकेली महिला का समाज में रहना कितना मुश्किल है, वही आज कल के दौर में अंग्रेजी का बढ़ता प्रभाव, वृद्धावस्था के चंद अनुभव और अंग्रेजी न जानने के कारण हुई परेशानियों को भी बहुत खूबसूरती एवं तार्किकता से दर्शाती है। थोड़ा मार्मिक चित्रण भी है किन्तु पात्र से सम्बद्धता या पश्चातवर्ती प्रभाव छोड़ने में वांक्षित रूप से सफल नहीं हो सकी। विषयवस्तु का आधार अपने स्तर पर कथानक को बहुत मजबूती प्रदान करने में सक्षम नहीं है। हल्का इशारा  अंतरजातीय विवाह एवं गोद लेने की प्रथा को लेकर भी है।



“बादशाह सलामत की मोहब्बत झूटी है”:-

मोहब्बत की निशानी ताजमहल बनाने वालों के साथ किये गए सलूक का मार्मिक दृश्य दिखलाती है। कहानी का पहला वाक्य ही लेखन कला  की छाप छोड़ जाता  है गौर फरमाएं की

“यह एक ऐसी उजली रात थी जिसके कालेपन की दूसरी मिसाल इतिहास में नहीं मिलती। 

उस रात सुदूर आसमान में टंगा चाँद भी मुंह छुपाने के लिए बदलियों की ओट तलाशता फिर रहा था। यमुना के जल पर तैर रही चांदनी इंसानियत के मुंह पर पुती हुई कालिख की मानिंद दिखाई दे रही थी”।

ऐसे ही सुंदर वाक्य अक्सर कहानियों में बीच में आकर शोभा बढ़ा देते है।

बादशाह के आदेश के अनुकरण में कलाकारों पर जो बीती उसका बेहद मार्मिक चित्रण प्रस्तुत किया है।

“रोशनी वाले दिए”:-

यूं तो लघु कथा ही है किन्तु सन्देश अत्यंत विशाल है। एक सुंदर, मानवीयता की बेहतरीन मिसाल है। गाँव का आपसी  सौहार्द, प्रेम भाव और भाई चारा  और जो कभी अपना आश्रय दाता था ज़रूरत के समय उसका सहारा बन जाने का संदेश है। मन प्रसन्न हो तो हर  ओर दीवली वाली उक्ति है। उजाला सिर्फ दीप से ही  हो ज़रूरी तो नहीं, वो जिस से सारी उम्मीदें समाप्त हो गयी हों, सारे संपर्क समाप्त  हो चुके हों वो यदि मुश्किल घड़ी में आकर हाथ थाम ले तो उस से बेहतर दीवाली और उस खुशी से बढ़ कर रौशनी कौन सी होगी।

 

समीक्षात्मक टिप्पणी:-

सामान्य भाषा शैली में आम जन जीवन से जुड़े विषयों पर कहीं न कहीं अपरोक्ष रूप से किन्हीं  गंभीर विषय  की और ध्यान आकृष्ट करती  हुयी, तथा पाठक से सम्बद्ध  होने में सहजता से सक्षम माध्यम आकार की कहानियां हैं जो सहज बोधगम्य शैली में स्वस्थ मनोरंजन प्रदान करती हैं। प्रत्येक कहानी अपना अलग ही भाव लिए हुए है तथा लेखक की कथानक विषयक सुस्पष्टता के फलस्वरूप कहानी में कहीं भी बोझिलता अथवा भटकाव नहीं है। 

सविनय

अतुल्य  

 

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