Rang Mehsoos Hote Hain by Piyush Singh
रंग महसूस होते हैं
द्वारा - पीयूष सिंह
प्रकाशक – अन्जुमन प्रकाशन
पीयूष सिंह जी का इसके
पूर्व एक काव्य संग्रह “रात की धूप में”
प्रकाशित हो चुका है एवं उसे पाठकों से प्राप्त प्रतिसाद तथा प्रोत्साहन के
फलस्वरूप उन्होंने पहले से भी बेहतर प्रस्तुत करने का प्रयास करते हुए नया काव्य
संग्रह “रंग महसूस होते हैं” पाठकों के समक्ष प्रस्तुत किया है। प्रथम कविता
संग्रह “रात की धूप में” जिसकी समीक्षा भी
आप के लिए मैंने प्रस्तुत की थी, उस में भी उन्होंने गंभीर सोच का परिचय दिया था
और प्रस्तुत संग्रह में भी उन्होंने जीवन में भिन्न भिन्न मौकों पर जो विभिन्न रंग
अनुभव किये उन भावों को अपने शब्द दिए हैं। रंगों से तात्पर्य जीवन के हर उतार
चढाव, ख़ुशी, पीढ़ा, दर्द, घुटन, और वे तमाम एहसास जो रोजाना की जिंदगी में उन्होंने
महसूस किये उन सभी हालात से है जिनके चलते जिंदगी कई रंगों से बनी एक तस्वीर होती
है जो नज़रिए पर निर्भर करती है देखने वाले
के, कि वह उसे किस रूप में देख रहा है।
संग्रह “रंग महसूस होते
हैं” की काव्यात्मक प्रस्तुति देते हुए कविता “रात की धूप में रंग महसूस होते है” उन्हीं
के शब्दों में,
रात की धूप के पश्चात
रंगों का त्योहार
जीवन के हर रंग से
कुछ न कुछ है इसमें
प्रेम,करुणा, कटाक्ष, वेदना
रंग बांटने में हम कितने
कंजूस होते है
रंग जब दिखते नही
तब महसूस होते है
उनकी हर एक कविता जिंदगी
के प्रति उनके नजरिये और हर एहसास को अनुभव करने कि उनकी सोच को स्पष्टतः दर्शाती है।
शीर्षक कविता “रंग
महसूस होते हैं”बेहद गंभीर सोच है। काला रंग अंधकार है या कोई भय या फिर सिर्फ वहम क्योंकि
उसने हर चीज़ को महसूस करना सीख लिया था रंग जब दिखते नही तब महसूस होते हैं।
वहीँ संग्रह की कविता “और
उषा से क्या मांगूं”, कुदरत ने जो इतना सब
दिया है उसके प्रति कृतज्ञता ज्ञापित करती है। वही “बचपन की हत्या”दर्शाती है कि वर्तमान
होशियारी के युग में सरल हृदय होना भी उपहास का कारण है, इस बात को अनुभव करते हुए
कई तरह से व्याख्या देने का प्रयास किया है, जो कि सटीक है एवं विचारण हेतु बाध्य करता है।
वहीं “बहुत बड़ी
कविता" स्पष्ट कर देती है कि कविता और कुछ नही अपितु कवि के अंदर का दर्द है
जो बाहर आ जाये तभी उसे आराम मिलता है उसे दबाना उचित नहीं। किन्तु वही विरोधाभास
कि ये पंक्तियां भी दखिये:
दर्द से एकदम खाली हो
जाना भी ठीक नहीं
दर्द होने से ही आराम
का मूल्य होता है।
और दर्द है तभी कविता
है, क्योंकि दर्द तो कविता रूपी गुलाब को सहेजने वाले कांटे जैसे हैं। पूर्व
संग्रह की अपेक्षा इस संग्रह में भाषायी एवं वैचारिक उत्थान स्पष्ट प्रतिविम्बित
होती है। “भूली हुई सी कुछ स्मृतियों को” कविता इसका प्रत्यक्ष प्रमाण देती है।
कंपित ओष्ठ मगर न फूटा
प्रेम का स्वर अंत में
टूटा
तुमने किन्तु सब कैसे
जाना मैन ही मन मुझे अपना माना
सर्वस्व समर्पण से नहीं
मैं विचलित
प्रियवर तुम ही हो जीवन
कविता
तुम्हे ये अनुपम करती
देता हूँ,
अपनी स्मृतियों के कोष
से चुनकर
सबको उत्कृष्ट कोई
स्मृति देता हूँ।
भूली हुई सी कुछ
स्मृतियों को
मैं स्वप्नों के चक्षहु
द्वार से
मन के भीतर फिर आने की
सांकेतिक अनुमति देता
हूं।
संग्रह के शुरू में
विभिन्न कविताओं में कविता को हो केंद्र में रखा है वहीं कविता “भ्रम होती है”,
में भी वे रोटी की मिठास में, सफलता के अभ्यास में, श्रम में, पसीने में,कविता
को ढूढ़ते से प्रतीत होते हैं।किन्तु वहीं इस सब का सच्ची कविता का भ्रम होने का एहसास भी
होता है। जिस्मफरोशी के व्यापार पर तंज करती कविता है “चमड़े का व्यापार” वही “चाँद
और सूरज” में एक कवि की सुंदर कल्पना के आयाम देखने को मिलते है जहां वे कहते है
कि:
चलो चंद्रमा और सूरज
मिला दें
सौंदर्य और शक्ति की
दूरी मिटा दें
और अपने इस विचार के
द्वारा एक नए तरह की व्यवस्था के प्रति सोच देते है।
ज़िंदगी के प्रति अपने
दृष्टिकोण को अत्यंत स्पष्ट एवं बेबाकी से रखा है।कविताओं के भाव देखें तो कविताओं में केंद्र में ज़िन्दगी ही है,अपनी रोज़मर्रा की जिंदगी के चलते छोटो छोटी
बातें अनुभव के आधार पर कवित्त रूप में प्रस्तुत कि हैं। बातों को सरल शब्दों में
कविता का नाम दिया है।वाक्य सरल किन्तु गंभीर हैं एवं
अपने आप में सम्पूर्णता के साथ स्पष्टता लिए हुए हैं।
कविता “चिंगारी” में उन्मुक्त
हो एक स्वतंत्र एवं सुन्दर जीवन न जीने की कवि के हृदय की तड़प का सुंदर चित्रण है,इस
अर्थ हीन जीवन को वे व्यर्थ ही निरूपित करते है, क्योंकि ऐसा कीड़े मकोड़ों की तरह
जीवन जीने का क्या अर्थ।
वही “दर्द और इंसान”
जुझारू व्यक्तित्त्व दर्शाती है तो “दर्द” उस के अनवरत बने रहने के दस्तूर को
नकारती हिम्मत और शक्ति की महत्त्ता दर्शाती है। वे कहते है कि
दर्द सदा के लिए नहीं
हो सकता
दर्द शाश्वत सत्य नही हो
सकता
दर्द जब नज़र अन्दाज़ की सीमा से बाहर हो जाता है
तब दर्द को हिम्मत के
आगे हारना ही पड़ता है।
वही प्रकृति और
पर्यावरण के ऊपर होते अत्याचार को कविता “धरती कि पीढ़ा और प्रतिशोध” में देखिये कैसे
बयान किया है
इन सभी में श्रेष्ठतम
जो उसकी संतान है
वही मूल है पीड़ा का और
उसी से निदान है।
अन्यथा अंत कहें या
सर्व नाश सुनिश्चित है
प्रकृति प्रेम दर्शाती
एवं उस पर और अत्याचार न करने की समझाइश देती एक और कविता “धरती मरती नही” भी है
जिसमें वे कहते है कि:
धरती चोटिल रोज़ होती है
पर धरती मरती नहीं।
प्रेम रस से पगी और
मेहबूब का इंतज़ार करती एक कविता “फिर से तू मेरे घर आती है” भी है जहां वे इश्क़
में डूबे हुए चाँद और ख्वाबों के नजारे लेते है कह रहे है की
उम्र
की परतें चेहरे पर साफ नजर आती हैं
पुरानी तस्वीरों में वो
बात साफ नजर आती है
खोलता हूँ जब पुराने
बक्से को
वही महक मिल जाती है
लगता है फिर से तू मेरे
घर आती है
वर्तमान में अक्सर पिता को
पैसे कमाने की मशीन की उपमा दे दी जाती है उसी विचार
को थोड़े भिन्न नज़रिये से देखते हुए पिता की तुलना घोड़े से करते है कविता “घोडा और
पिता” में जो अनथक दौड़ता रहता है किन्तु उनके जीवन के
आखरी वक्त में वही पिता क्या पाते है:
पैरों में तजुर्बे की
नाल
वक्त की कीलों से
ठुकवाकर
दौड़ता रहता है पिता
किन्तु बूढ़ा होने पर
उसे देखभाल, संवेदना
प्रेम के स्थान पर बांध दिया जाता है
अस्तबल में या फिर खुला
छोड़ दिया जाता है
अपने हालपर मरते दम तक।
कुछ और भी कविताएं
रिश्तों का विश्लेषण करती है जैसे हाशिये पर टंगे रिश्ते और "हमारे हैं"।
वही कविता “जब रोशनी बट
रही थी” में हक़
की लड़ाई है बात व्यवस्था के खिलाफ है सुविधाओं और हक के लिए है कविता के अंत में
वे कहते है कि:
अब मुझे रोशनी कमानी है
अपनी मेहनत के पसीने से
और अगर कोई न दे
मेरी मेहनत की कमाई तो फिर
मुझे रोशनी छीननी है
अपने हिस्से की
कविता "एक स्वर
में हृदय के अंदर दबी
हुई चिंगारी है जो बहरी व्यवस्था को जागृत करने हेतु
विरोध प्रकट करने हेतु एक संदेश है।कठिन और कटु सत्य भी बहुत ही आसान से शब्दों में प्रस्तुत कर दिए हैं जो हर पंक्ति में कवि
हृदय के दर्द को बयां करते है।
उनकी कविता में जीवन के संघर्ष का रंग
दीखता है तो साथ ही जीने का जोश भी, रिश्तों कि आंच का रंग है तो प्रेयसी को भी
कहाँ भुला सके हैं।बहुत ही खूबसूरती से साधारण जीवन की भाषा शैली में ही भावों को
शब्दों में बाँधा है।
वहीं “जड़ की तलाश”
मेंअपनी जड़ों को तलाशता,अपनों से मिल जाने की तड़प बतलाता पत्ते को सांकेतिक रूप
में प्रयोग कर एक सुंदर विचार दिया है।
कविता “जीवन में विकल्प
होते हैं क्या” की ये पंक्तियां कितना कुछ कह जाती है:
एक ऐसी जगह जहां कुछ
मारे हुए,
जीवित लोगों के सिवा कुछ
भी नही है,
कुछ आँखें जिनमें भूख
झलक रही होगी,
भूख चिंगारी से कब आग
हो जाती है,
पता नहीं चलता।
वही कविता “काबिल” और “काली
रात” बिल्कुल ही अलग भाव एवं लेखक की अत्यंत गहरी सोच को दर्शाती रचनाएँ हैं। जहां
“काबिल” में इन्सान कि नेक दिली का ज़िक्र है तो वहीं कविता “काली
रात” में जिस्म बेचने को मजबूरउस अर्ज़ूदा का दर्द दखिये कि
हर रात का मालिक बदल
जाता है
सुबह का जो अँधेरा है
वो उसका है ,
और तोहमत लगाई है सबने
मुह काला करने की
आईने मेंकिसका मुह काला
है साफ दिखता है।
“कविता की मौत’ एक ऐसी
कविता है जिसमें कटु सत्य अक्षरशः बयान कर दिया है। कड़वा है किंतु सच्चा है। कवि
का दर्द बहुत सटीक बयान किया है:
कविता की मौत का मातम
भी नहीं होता
बस कवि रोता है इस बात
पर,
क्यों उसने अपनी कविता
ह्रदय से निकाल कर
बाज़ार में रख दी बिकने
को।
वहीं “मैं धूमिल होना
चाहता हूँ” एक और भाव प्रधान रचना है एवं कवि की बेहद परिपक्वता एवं धीर गंभीर सोच
व विचारधारा को दर्शाती है ये पंक्ति:
मैं प्रकाश में लिप्त
हुआ अंधकार का पुतला हूँ
जिसके प्रकाश की हर
किरण झूट है
कभी न पकड़ में आने वाला
सदा ही सत्य दिखने वाला
झूठ,
मैं बहुत भीतर कहीं
प्रज्वलित होना चाहता हूँ,
मैं धूमिल नहीं पर
धूमिल होना चाहता हूँ।
बेहद तीखा व्यंग करती
है “मत पूछो” जब वे लिखते है कि:
आजादी सिर्फ तारीख है
हैं वाकई आज़ाद मत पूछो।
तो बहुत कुछ कह जाते है
औरर चंद शब्दों मेंव्यवस्था पर चोट से लेकर भूख रिवायत,हालात
पर अनकहा सब कुछ का कह जाते है।
“मसखरा” के द्वारा अत्यंत गंभीर सोच
कि और इंगित किया है कि अपने अंदर के इंसान को जानो अपने दर्द भूल कर मसखरे के
जैसे जिंदगी हस कर गुजार दो, वे कहते हैं कि :
आंसू असली है या नकली
पहचान नहीं पाओगे
ये स्वयं को समझने का
अवसर सुनहरा है,
गौर से देखो अपने भीतर
भी एक मसखरा है।
वहीं अन्य कविताएं भी
जैसे मेरे हमदम मेरे दोस्त, मुझे
कुछ नहीं कहना रात और दिन,सुन्दर भाव के संग जीवन के भिन्न
भिन्न रंग प्रदर्शित करती हैं वहीँ जीवन में संतुलन की अनिवार्यता दर्शाती कविता
है “संतुलन” और “स्त्री’ एवं “वेदना” का भाव भी सुन्दर है।भाव प्रधान,
स्पष्टवादिता एवं सामान्य शब्द तथा वाक्य विन्यास संग्रह को पठनीय एवं संग्रहणीय बनता
है।
पीयूष जी के पिछले
काव्य संग्रह “रात कि धूप” की समीक्षा भी मैंने करी थी एवं प्रस्तुत काव्य संग्रह
को पढने के बाद नि:संदेह कह सकता हूँ कि अभी उनके अन्दर से बहुत कुछ बाहर आने को
बेताब प्रतीत होता है बहुत कुछ शेष है अतः आने वाले समय में अन्य श्रेष्ठ रचनाएँ
पाठकों को उनसे प्राप्त होंगी। पीयूष जी को शुभकामनाओं सहित,
सादर,
अतुल्य
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