Juloos Ki Bheed By Bhavtosh Pandey
“जुलूस की भीड़”
द्वारा :भवतोष पाण्डेय
प्रकाशक: Notion press
संग्रह कि पहली कहानी “मुक्ता” एक कहानी नहीं अपितु एक विचार है, एक अत्यंत गंभीर सोच कि ओर ले जाने हेतु शरुआत है, यह प्रारंभ है एक ऐसी विचारधारा निर्मित करने का जहाँ सामाजिक दायरों में रहते हुए व्यक्ति स्वयं एवं स्वयं के परिवार के विषय में सोचे किन्तु समाज के प्रति कर्तव्यों में एवं व्यर्थ के दिखावे तथा अनावश्यक ही समाज की परवाह हेतु स्वयं एवं परिवार को न आहूत कर दे। आज, आम व्यक्ति, समाज में लोग क्या कहेंगे पर अधिक विचारण करता है, बनिस्बत इस पर विचार करने के, कि उसकी स्वयं की अथवा परिवार कि प्राथमिकताएं क्या है। सामाजिक परिवेश, उसके तंग दायरे में बिखरे पड़े ओछी मानसिकता ढो रहे सैकड़ों अनजान चेहरों की फिक्र करते हुए, स्वयं के हितों से समझौता कर बैठता है और बाज़ दफ़ा तो अपना सर्वनाश ही कर लेता है।
“मुक्ता” एक सद्ध्य नवयुवती की कहानी है जो बाली उम्र के प्रेम में अथवा कहें कि आकर्षण में चालाक और घाघ छलिये द्वारा छली जा कर अपना सर्वस्व गँवा बैठती है, किन्तु परिवार की सोच का दायरा समाज और समाज के तथाकथित चार लोग क्या कहेंगे के इर्द गिर्द ही सिमटा रहता है। उनकी इस दकियानूसी सोच के परिणाम पर न जाते हुए कहूँगा कि सुन्दर तरीके से कही गयी कहानी है घटनाओं में अच्छा तारतम्य बैठाया गया है। कथानक के संग लेखक ने बीच बीच में गम्भीर विचारों को भी समाविष्ट किया है, वे कहते हैं कि “भले प्रेम शीर्ष पर हो लेकिन उसके मूल में मित्रता ही होती है, इस तरह के प्रेम में परिवर्धन तभी तक होता रहता है जब तक इसमें मित्रता का पोषण बना रहे। मार्क्स के शब्दों में कहें तो मित्रता के बेस स्ट्रक्चर पर प्रेम का सुपर स्ट्रक्चर खड़ा था”। विभिन्न स्थानों पर कुछ कुछ संदेशात्मक शैली का भी प्रयोग किया है जो उनके गंभीर वैचारिक स्तर की झलक स्पष्तः सामने रखता है। एक अन्य कहानी “तगण” भी घरों में होने वाले एक सामान्य से विचार विमर्श को लेकर रची गयी है। “तगण” हिंदी व्याकरण का शब्द होता है जिसमें पहले दूसरे एवं तीसरे अक्षर में क्रमशः दीर्घ, दीर्घ, एवं लघु मात्राएँ हों, किन्तु इस शब्द से प्रेरित हो कहानी में बहुत ही सुन्दर विषय चुना है , वर्तमान युवा पीढ़ी की सोच एवं बुजुर्गों के ख्यालों के टकराव को दर्शाती हुयी कहानी में नवजात के नामकरण को ले कर बुना ताना बाना है, किन्तु हिंदी व्याकरण कि सुन्दर जानकारी के साथ अंत भी सुखांत है।
वहीं
कहानी “वो राम अब नाहीं” में एक प्रेम त्रिकोण रचने का प्रयास किया गया है। कथानक
में आज कल के फूल फूल मंडराने वाले भँवरे रुपी युवा एवं उनसे छली जाती न सिर्फ
नादान वरन सुशिक्षित युवतियां, नारी पर
अपना स्वत्वाधिकार बनाने कि मानसिकता के साथ डोरे डालते, बेताब युवा वर्ग के रंगीन
स्वाभाव के साथ कुछ व्यावसायिकता भी दिखाने का प्रयास किया गया है। कथा का अंत
रोचक बन पड़ा है, किन्तु एक पात्र चिरंजीवी का स्पीच वाला भाग उबाऊ है एवं कथानक का
आवश्यक भाग होते हुए भी मूल कथानक से ध्यान भटकाता है। लगभग ऐसी ही कथावस्तु को ले
कर रचित एक अन्य कथा है “सारांश”,
किशोर उम्र के त्रिकोणीय आकर्षण एवं एकपक्षीय प्रेम के फलस्वरूप आपसी वैमनस्य, प्रतिस्पर्धा,
प्रतिद्वंदिता के इर्द गिर्द कथानक बुना गया है। कैशौर्य अवस्था में
उस अल्हड़ता के दौर में जब भावनाएं सहज ही मस्तिष्क को काबू में करने में सक्षम
होती है एवं मन-मस्तिष्क इतना परिपक्व नहीं होता कि भला बुरा समझ सके तब वह महज़ आकर्षण
को प्रेम समझ कैसे कैसे कदम उठा लेता है, यही सुन्दर सन्देश
बेहद रोचक तरीके से प्रस्तुत किया गया है। एक अन्य कहानी “नाई की दुकान” है जहाँ
व्यक्ति का व्यक्ति पर से कैसे विस्वास उठता जा रहा है दिखलाया गया है, किन्तु उसी अविश्वास कि सुई जब स्वयं कि और घूम जाती है तब क्या बीतती है
कम शब्दों में बतलाने का प्रयास किया है। वाक्य छोटे है सामान्य बोलचाल कि भाषा है
साथ ही शब्दों का चयन भी सामान्य है।
शीर्षक
कहानी “जुलूस कि भीड़” हमारे चारों ओर समाज में जो कुछ घटित हो रहा है उसका सूक्ष्म
चित्रण है। राजनैतिक कुटिलता, निहित स्वार्थ हेतु इंसानियत का क़त्ल, भावनाओं को
कुचल कर आगे बढ़ने कि अदम्य लालसा तथा झूठ और मक्कारी के बढ़ते बोलबाले को वर्णित
करने हेतु लेखक द्वारा बुना गया कथानक अपनी बात को पाठक तक पहुचाने में पूर्ण सफल
है। प्रतीकात्मक कथानक के द्वारा समाज के मूल चरित्र को प्रस्तुत किया गया है।
इसी संग्रह कि एक अन्य कहानी “वर्चस्व” पति पत्नी के बीच आत्म सम्मान किस तरह से आड़े आ कर एक हँसते खेलते मधुर दाम्पत्य जीवन को नष्ट करने कि कगार तक ले जाता है दर्शाती है । दाम्पत्य जीवन में जहाँ रिश्ता समानता का है, मित्रवत एक दूसरे का सम्मान करते हुए चलता रहे तो ही बेहतर है, जिस घड़ी दोनों पक्षों के बीच अपना वर्चस्व कायम रखने कि इक्षा बलवती होने लगे, उस हेतु प्रयास होने लगें, बस वही संबंधों में दरार भी पड़नी शुरू हो जाती है। शतरंज के खेल को आधार बना कर बड़े ही साधारण शब्दों में दाम्पत्य जीवन को सँभालने एवं खुशहाल बनाये रखने हेतु नायब मन्त्र दे दिया है। वहीं कहानी “अनिर्णय”आज कि युवा पीढ़ी के मोबाईल फोन के प्रति व नए नए गेजेट्स के प्रति दीवानेपन को चिन्हित करती है जो मोबाईल एवं संचार के नए नए माध्यमों को अर्जित करने हेतु किस तरह बाकी सब कुछ भुला बैठी है।
कहानी “आजमाइश” एक युवा मछुआरे कि कहानी है जो अपने पुश्तैनी काम को छोड़ कर अन्य साधनों से रातों रात अमीर बनने हेतु प्रयासरत है जिसमें उसे कितनी और कैसी सफलता मिलती है यह तो कहानी पढ़ कर ही पता चलेगा। कहानी बोलचाल कि किन्तु स्तरीय भाषा में है जिसमें सीमित पात्र है एवं प्रस्तुति रोमांचक तथा संतोषजनक है। कहानी “एक मॉल के सहयात्री” एक प्रेम सम्बन्ध के बनने से पहले ही बिखर जाने वाले बेनाम रिश्ते कि कहानी है जिसके पार्श्व में आजीविका अर्जन, गरीबी, भेदभाव एवं इस सब के चलते, खोते जा रहे आत्म सम्मान का दर्द का एवं सम्बंधित विभिन्न स्थितियों का सटीक चित्रण है।
पुस्तक notion press के द्वारा
प्रकाशित कि गयी है एवं सहज उपलब्ध है। संग्रह में चयनित कहानियां सहज गम्य होते
हुए पाठक को जोड़ कर रखने में सक्षम है अतः पढ़ें एवं अपने विचारों से अवश्य अवगत
कराएँ।
सादर,
अतुल्य
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