Baal Katha Sagar By Devendra

 

बाल कथा सागर

बाल कथा सागर

विधा : बाल कथा संग्रह   

द्वारा : देवेन्द्र

प्रलेख प्रकाशन द्वारा प्रकाशित

मूल्य:500.00

पृष्ट:220

प्रथम संस्करण: 2023

समीक्षा क्रमांक : 114



“बाल कथाएं” आम तौर पर बच्चों के लिए लिखी जाने वाली कहानियां होती हैं। इन कथाओं का स्वरूप बच्चों की रुचि को ध्यान में रखते हुए आकर्षक, सरल, और समझने में आसान होता है। आकार की दृष्टि से भी, यह छोटी छोटी कहानियां होती हैं जो बच्चों की रूचि, शिक्षा, और मनोरंजन को ध्यान में रखते हुए लिखी जाती हैं।

वर्तमान विकसित साधन सम्पन्नता  एवं तकनीकि क्षेत्र की अभूतपूर्व प्रगति के चलते आज के बच्चों की पसंद में भी व्यापक परिवर्तन देखने को मिलता है। अब वे कुछ भिन्न प्रकार की कहानियों को पसंद करते हैं। उन्हें फैंटेसी, एक्शन, विज्ञान व अंतरिक्ष के भेद जैसे विषय अधिक पसंद आते हैं। पूर्व कालीन परी कथा, जादूगर के किस्से, राजा एवं राक्षस के युद्ध, राजकुमारी का अपहरण व राजकुमार द्वारा बचाकर लाना जैसे किस्से व अन्य प्रेरक, रोमांचक, स्वतंत्रता सैननियों के, क्रांतिकारियों के जीवन परिचय और सामाजिक संदेश वाली कहानियां नापसंद न भी कहें तो कम पसंद आती हैं। वे “ई”  उपन्यासों की ओर भी आकर्षित होते हैं एवं वहाँ भी उनकी प्राथमिकता  कॉमिक्स, ग्राफिक नॉवेल्स, और एनिमेशन ही होते हैं।

बाल कथाओं के प्रचलित स्वरूप के द्वारा, अक्सर बच्चों को ज्ञानवर्धक संदेश देने का प्रयास किया जाता है। ये कहानियां बच्चों को समाज के मूल्यों, नैतिकता, सही और गलत के अंतर को समझाने में मदद करती हैं। साथ ही, ये कहानियां उन्हें संस्कृति, विज्ञान, इतिहास, पर्वों, और समस्याओं के साथ परिचय करने में मदद करती हैं। बाल कथाएं बच्चों के बुद्धिमान सोच को विकसित करती हैं और उन्हें अधिक समझदार बनाती हैं। इसलिए, ये कहानियां बच्चों के मानसिक, भावनात्मक, और नैतिक विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं।

कहने को तो बाल कथाएं बच्चों के लिए ही होती हैं किन्तु मेरे मन्तव्य से  बाल कथाएं बड़ों के द्वारा भी पढ़ी जाना चाहिए। बाल कथाएं बड़ों के लिए भी मनोरंजन एवं ज्ञान का स्रोत होती हैं। बाल कथाएं केवल बच्चों के लिए नहीं होती, उनमें तो सरल शब्दों में,  समाज के मूल्यों, नैतिकता, और संदेशों को समझाने की खासियत होती है। इन कथाओं में दर्शाए गए अध्यात्मिक, शिक्षाप्रद, और मानवता के संदेश वयस्कों के लिए भी प्रासंगिक होते हैं। बाल कथाएं व्यक्ति के मन में नैतिकता और सच्चे मूल्यों को जागृत करती हैं। इनमें विविधता होती है और बच्चों से लेकर वयस्क तक किसी भी उम्र के व्यक्ति को उनकी सरल सहज एवं रुचिकर प्रस्तुति से लाभ ही होता है।

बच्चे  आपसे अलग-अलग विषयों पर चर्चा करने वाली कहानियों को सुनना पसंद करते हैं जो उनके दृष्टिकोण और ज्ञान को विकसित कर सकती हैं,इसलिए, बाल कथाएं बड़े भी पढ़ सकते हैं और इससे उन्हें मनोरंजन के साथ-साथ नैतिक और भावनात्मक उन्नति मिलती है ।

देवेन्द्र जी ने 30 वर्षों तक  बाल साहित्य की सुप्रसिद्ध पत्रिका “नंदन” से जुड़े रहे व उस के जरिए उन्होंने बाल मनोविज्ञान को बहुत गहराई से समझा है।  कहने को तो यह उन बाल कथाओं का संग्रह है जो कि देवेन्द्र जी द्वारा उनके खजाने से निकाल कर लाई गई हैं, किन्तु ये कथाएं  बाल कथाओं के जाने पहचाने परी कथाओं या अच्छा राजा,  विलेन और दुष्ट  राक्षस वाले एक तय शुदा फार्मेट से आगे की दुनिया की बातें हैं।  

जैसा की देवेन्द्र जी स्वयं कहते हैं की हमें बच्चों की कथाओं के विस्तार के नए अंतरिक्ष खोजना है, उसी तारतम्य में कहना है की यह कथा संग्रह है तो बाल कथा संग्रह किन्तु सम्पूर्ण कथा संग्रह को पढ़ने के पश्चात मेरा  व्यक्तिगत मत है कि कथाएं बच्चों के स्तर से कुछ ऊपर की सोच लिए हुए हैं। यूं तो कहानियाँ बाल कथायें ही है,  किंतु संदेश बच्चों की उम्र की दृष्टि से थोड़ा ऊपर है। जो कि देवेन्द्र जी की, नंदन में उनकी कहानियों की मेरी परिचित शैली  से हटकर है। जब तलक वे नंदन के साथ जुड़े हुए थे तब तक उनकी कहानियाँ वहाँ की नीति रीति के हिसाब की रहती होंगी और अब संभवतः यह स्वतंत्र लेखन का प्रभाव है।

संग्रह की  सभी  कहानियाँ अत्यंत सरल सहज होते हुए कुछ खास भी हैं जैसे की पहली ही कहानी 

“रानी चिड़िया” :जो कि यूं तो एक इंसानों की  जुबान समझने और बोलने वाली चिड़िया की कहानी है किन्तु वहीं बेहद आसान भाषा में वे समझा  देते हैं की वे शासक  जो चापलूसों से घिरे हों एवं अपने विवेक का इस्तेमाल नहीं करते उन्हें  वही दिखता है जो वे चापलूस  दरबारी उसे दिखाना चाहते हैं और दूसरे यह की बेहतर है ऐसे शासक  को कोई सलाह दी ही न जाए।  

कहानी “बूढ़ी छड़ी” जहां शिक्षक के प्रति श्रद्धा व आदर का भाव  दर्शाती है वहीं कहानी “उसे क्या चाहिए” बच्चों के साथ साथ बड़ों को भी स्वाभिमान का  पाठ सिखाती है साथ ही यह भी की स्वाभिमान को कभी भी  पैसे से नहीं तौला  जाना चाहिए। 

“अहंकार टूटा हुआ”, यूँ तो बाल कथा है किंतु संदेश सभी के लिए है जहां व्यक्ति स्वयं के अहंकारवश भगवान पर भी स्वामित्व और बटवारे के दावे करने लगता है तथा समाज में अपना वर्चस्व स्थापित एवं प्रदर्शित करने हेतु भगवान के मंदिर को भी नहीं बख्शता। सरल शब्दों में गंभीर बात कही है।

प्रभु पर आस्था बालमन की निश्छल  श्रद्धा एवं स्व से परे सर्व के चिंतन को,निस्वार्थता के गुणों  को दर्शाती कथा है "किसको दूं ", जहां बाल मन की शंका के निवारण के साथ साथ अत्यंत खूबसूरती से सभी को संदेश है कि सिर्फ अपने ही विषय एवं स्वार्थ से हटकर सभी के बारे में सोच जाना चाहिए ।

परोपकार एवं परित्यक्त तथा बेसहारा के उद्धार की भावना से ओतप्रोत, एवं मानवीय मूल्यों को सुंदरता से परिभाषित करती कृति है "सड़क पर कभी नहीं "। इस कथा के माध्यम से लेखक नें बेसहारा बच्चों का सहारा बन ने हेतु आगे आने की सोच को उठाया है तथा यह भी की एक छोटा सा प्रयास भी किसी नेक व बड़े अच्छे  काम के लिए पर्याप्त होता है। 

बाल कथा " मिठास " वैयक्तिक सौहार्द एवं सरल व्यवहार की मिसाल दर्शाती कहानी है जहां मन में गलत इरादों के साथ शुरू किए गए काम  करने वालों का भी हृदय परिवर्तन संभव है व कैसे संभव है यह दर्शया गया है ।

कहानी में एक चतुर व्यक्ति एक बेसहारा महिला की दुकान हड़पने हेतु उन के परिवार से  मेलजोल बढ़ाता है किंतु धीरे धीरे उनके सरल एवं आत्मीय व्यवहार के कारण उसका हृदय परिवर्तन हो जाता है तथा वह अपने मूल इरादे के विपरीत उनकी संभव सहायता करने हेतु तत्पर हो जाता है।

मात्र चंद कहानियों के विषय में ही यहाँ लिख रहा हूँ अन्यथा तो संग्रह की 50 कहानियों में से किसी को नभी कमतर नहीं आँका जा सकता। जैसे की “घर में घर खाली” हो या “कबूतरों वाली हवेली” या फिर बात करें “मेरा तेरा बचपन” की या “रिक्शा डॉक्टर’ अथवा पुराना दोस्त की, हर एक कहानी पहली से अच्छी ही लगती है व सभी कहानियाँ मैंने एक बैठक में ही समाप्त करी। “काली कलम”, “जन्मदिन उदास है” “सबसे अच्छा चित्र” “एक नया सितारा” तनिक भावनात्मक ज्यादा हैं, बेहतरी से अपने संदेश देती हैं व मनोरंजन तो निर्बाध है ही।    

 मुझे यह कहने में किसी प्रकार का भी संकोच अथवा झिझक नहीं है की मेरी पीढ़ी के लोग एवं मैं भी  देवेन्द्र जी द्वारा संपादित कहानियाँ पढ़ते हुए  बड़े हुए, बचपन का उस पुस्तक के प्रति आकर्षण व जुड़ाव मुझे कितना निष्पक्ष रख सका यह निर्णय मैं पाठकों पर छोड़ता हूँ।

शुभकामनाओं सहित,

अतुल्य

  

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